Saturday, October 20, 2012

''एक शाम पुलिस शहीदों के नाम''

इन्दौर -दिनांक 19 अक्टूबर 2012- आज दिनांक 19 अक्टूबर 2012 को शाम 07.30 बजे ''एक शाम पुलिस शहीदों के नाम'' काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में श्रीमति अनुराधा शंकर, भापुसे, पुलिस महानिरीक्षक इंदौर जोन, इंदौर के मुखय आतिथ्य एवं श्री ए.साई मनोहर, भापुसे , पुलिस उपमहानिरीक्षक इंदौर के विशेष आतिथ्य में संपन्न हुआ, जिसमें इंदौर की सांसद श्रीमति सुमित्रा महाजन, माननीय मंत्री श्री महेन्द्र हार्डिया, विधायक श्री तुलसी सिलावट, विधायक श्री अद्गिवन जोशी एवं अन्य गणमान्य नागरिक तथा पुलिस के अधिकारी व कर्मचारीगण उपस्थित थे। इस काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता विखयात कवि पंडित सत्यनारायण सत्तन द्वारा की गयी एवं कविवर श्री ज्योति कानपुरी, श्री सुखदेव सिंह जी कश्यप, श्री वेदप्रकाश विद्रोही, श्री प्रदीप नवीन, श्री गिरेन्द्र सिंह भदौरिया तथा श्री कैलाश जैन द्वारा पुलिस शहीदों की स्मृति में कवितायें पढी गयी। जिनके कुछ अंश निम्न प्रकार है -
माननीय

मुखयालय से खबर आई है,
नगर में गुंडा विरोधी अभियान चलाइए।
असामाजिक और आदतन अपराधियों की
तस्वीरे, थाने की दीवार पर लगाइए॥
 
थाने का मुआयना होताहै इस माह
थाने का रिकार्ड ठीक किया जा रहा है।
गुंडा सूची का विश्लेषण हो रहा है
जरायम पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है॥
 
गुंडा सूची खंगालने समय
पाया कि कई सियासती हो गए है।
कई सकूनत से लापता है
और शहर की आबादी में खो गए है॥
 
हमारे नये किरायेदार की
सूचना देने हम थाने पर गए।
वहॉ पर हेडमोहर्रिर पुराने थे
और टीआई साहब थे नए॥
 
इलाके मे कही गड़बड़ थी,
टीआई साहब जल्द रूखसत हुए।
हेड मोहर्रिर ने हमे देखा तो
खड़े होकर सलाम किया और गदगद हुए॥
 
इस थाने पर हम भी कभी तैनात थे,
यह हेडमोहर्रिर तब सिपाही थे।
कई थानो पर तैनात रहे है वे
बड़े बड़े मुखबिरो के भाई थे॥
 
हमे कुर्सी देते हुए बोले, कैसे है सर,
हमने प्रतिप्रश्न किया, आप कैसे है।
बोले, अब यह नौकरी मुद्गिकल है सर
जैसे दिन आपके थे, नही वैसे है॥
 
फिर पूछा, 'सर चाय पियेंगे,
हमने मुंडी हिलाकर मना किया।
फिर हमने पूछा, कितने साल रह गए है,
उन्होने झट एक साल बता दिया॥
 
बैठे बैठे हमारी निगाह दीवार पर
लगे गुंडे के फोटुओं पर गई।
उसमें कई तस्वीरे पुरानी थी,
और कुछ थी बिल्कुल नई॥
 
हमनेहेड मोहर्रिर से पूछा, हेडसाहब
यहॉ अमुक अपराधी की तस्वीर नही है।
क्या वह फौत हो गया है,
या फिर बस गया वह और कही है॥
 
वे असमंजस में बोले,सर आपको पता नही।
वैसे तो वे अपराधों में गहरे पैठे है,
पर राजनीति और चुनाव की महिमा है,
वे माननीय हो गए है, सदन में बैठे है।ं
                                         सुखदेव सिंह कश्यप
 
भीति पर चित्र

भीति पर यह चित्र देख
ऑख भर आती है,
कंत, तुम्हारी याद बहुत आती है।
 
कुछ दिन साथ रहे बस
फिर प्रवास कर्तव्यों के पथ।
हम मन ही मन उत्फुल्ल रहे
बैठ तुम्हारे भावो के रथ॥
 
रोज तुम्हारी चिट्‌ठी पढ़ पढ़,
कितने रंग बिखेरे अपने।
संग तुम्हारे भूले मन में
देखे कई सुनहरे सपने॥
 
कैसे भूल वे शब्दालिंगन
पत्रों के ही मधुचुंबन।
बैठे अकेले पढ़ते चिट्‌ठी
तन में उठती थी सिहरन॥
 
लिए 'एलबम' चित्र तुम्हारे
हम देखा करते बैठ अकेले।
जाने कितने गए देखने
सुख सर्जन के अद्‌भूत मेले॥
 
क्या मालूम यह समय निगोड़ा
हो जाएगा इतना बौना।
कितना सुख पाया था हमने
संपन्न हुआ जब अपना गौना॥
 
अब तुम शहीद, मै शहीद की पत्नी
मै इतना विश्वास दिलाती हूॅ।
जो अंश तुम्हारा पल रहा पेट में
मै उसकी कसमें खाती हूॅ॥
 
यह रूप तुम्हारा नया, समर में फिर जाएगा।
प्रतिकार तुम्हारा लेगा, अरि के प्राण उड़ाएगा।
मरणोपरांत यह मान सम्मान तुम्हारा
लख गर्व से ऑख लर जाती है।
कंत तुम्हारी याद बहुत आजी है।
भीति पर यह चित्र देख ऑख भर आती है।
                                                 सुखदेव सिंह कश्यप
 
हम आरक्षी

देशभक्ति और जनसेवा के, हम ही उन्नायक है।
हम प्रहरी है जन समाज के, हम ही नायक है॥
 
हिमगिरी की सीमाओं पर, हम ही देते पहरा।
हम ही तटरक्षक है, सागर से रिश्ता गहरा॥
हम ही समाज के नासूर मिटाने वाले।
आरक्षी है हम, शांति व्यवस्था के रखवाले॥
 
जब जब समाज पर विपदा आई।
प्राण हथेली पर रख, हमने की अगुवाई।
हम ही खड़े आग पानी में, लोग बचाने वाले।
हम ही ने चम्बल के, कितने बीहड़ खंगाले॥
 
जो वन प्रांतर में उत्पात मचाते।
जो अस्पताल और स्कूल उड़ाते॥
उन नक्सलियों के अरि हम हैं।
भय न हमें सताता, हम में संघर्षी दम है॥
 
जब उत्पात मचाते, मजहब के उन्मादी।
जब त्रस्त नगर की हो जाती पूरी आबादी।
तब निष्पक्ष पहल हम ही करते हैं।
हम उस तनाव में भी धीरज धरते हैं॥
 
हम सतमय होकर, अपना कर्तव्य निभाते।
हम कर्तव्य वेदी पर लड़ते लड़ते मरजाते॥
इस समाज को हमने अपना लहू दिया है।
अपने शोणित से कर्तव्यों का तिलक किया है॥
 
फिर भी इस समाज से हमको गिला नहीं।
हमको जो मिलता था वह हमको मिला नही॥
अगणित शहीद हुए हैं, जवान और अधिकारी।
पर डाक टिकिट, हुआ न उन पर जारी॥
 
बिन फल के हम अपना कर्तव्य निभाते।
कई बार हमें भी मुद्गिकल के पल आते॥
इस लोकतंत्र के सांचे में कई ऐसे अवसर आए।
राजधर्म और लोकधर्म के बीच फंसे हम पाए॥
 
राजनीति के कई सुदर्द्शन हमने झेले।
अपराधों के नामो से, बार बार हम खेले॥
और झूठ के फन्दो पर भी हम झूले।
पर अपनी राह न छोड़ी, न अपना रस्ता भूले॥

जो शीर्ष पर बैठे हैं अधिकारी।
बस उनसे इतनी विनय हमारी॥
अपने मातहत अंगो की रक्षा करना।
जो कर्तव्य वेदी पर जखम मिले, बस उनको भरना॥
 
एक विनय है यही हमारी, देश चलाने वालों से।
ऊॅचे ऊॅचे पद पर बैठे, सत्ता के रखवालों से॥
हमे न अपनी एजेंसी माने, स्वतंत्र हमें रहने दे।
जो सच पाया जांच में हमने, वह सच हमको कहने दे।
 
इस लोकतंत्र में हम जनता के उत्तरदायी।
नही भ्रष्ट का हित साधेंगे, ऐसी हमने कसमें खायी।
हम अनुशासित बेड़े के, अनुशासन धर्ता हैं।
केवल जनता-हित, साधेंगे, हम जनता के कर्ता हैं॥
 
देश भक्ति जन सेवा के हम ही उन्नायक है।
हम प्रहरी जन समाज के, हम ही नायक हैं॥
हम ही समाज का नासूर मिटाने वाले।
आरक्षी हैं हम, शांति व्यवस्था के रखवाले॥
                                                   सुखदेव सिंह कश्यप
 
जो हमारी सुरक्षा में प्राण अपने वो गये है
निभा कर कर्तव्य अपना जो सदा सो गये है।
उनके सपने सार्थक करना हमारा फर्ज भाई,
पहन खाकी-खाक में मिल स्वयं खाई हो गये है।
 
राष्ट्रभक्ति और जनसेवा सुरक्षा का वचन
आपराधिक गतिविधियों से सुरक्षित हो वतन।
नक्सली डाकुओं से लड़ते हुये है जो शहीद,
उन पुलिस के जवानों को देश करता है नमन।
 
गली मोहल्ले, चौराहों पर सदा पुलिस का फेरा है,
सब कुछ उसको मालुम हैं, क्या तेरा क्या मेरा है।
ढका हुआ खाकी वर्दी से तन पर मन मानव का है,
हम सब जैसी दुनियादारी, सब सा शाम सबेरा है।
                                            सत्यनारायण सत्तन
                                            पूर्व विधायक म.प्र. विधानसभा

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