हजारों पुलिसकर्मियों को राष्ट्र-संतों ने सिखाया जीवन निर्माण एवं राष्ट्रोत्थान का पाठ
इन्दौर-दिनांक 20 सितम्बर 2014-मध्यप्रदेश पुलिस इंदौर द्वारा बास्केटबाल स्टेडियम में शनिवार को आयोजित संत एवं सिपाही समागम एवं संबोधन कार्यक्रम में राष्ट्र-संत महोपाध्याय ललितप्रभ सागर एवं दार्शनिक संत चंद्रप्रभ महाराज अपना विशेष संबोधन दिया।
समारोह में डी.आई.जी श्री राकेश गुप्ता, एस.पी (पश्चिम) श्री आबिद खान , एस.पी.(पूर्व) श्री ओ.पी. त्रिपाठी,ए.एस.पी. श्री राजेश सिंह, श्री दिलीप सोनी, श्री देवेन्द्र पाटीदार, श्री विनय पॉल, अंजना तिवारी, राजेश सहाय, रामजी श्रीवास्तव, आदित्य प्रतापसिंह एवं कार्यक्रम संयोजक अजय चौधरी एवं जयसिंह जैन विशेष रूप से उपस्थित थे ।
समारोह में डी.आई.जी श्री राकेश गुप्ता, एस.पी (पश्चिम) श्री आबिद खान , एस.पी.(पूर्व) श्री ओ.पी. त्रिपाठी,ए.एस.पी. श्री राजेश सिंह, श्री दिलीप सोनी, श्री देवेन्द्र पाटीदार, श्री विनय पॉल, अंजना तिवारी, राजेश सहाय, रामजी श्रीवास्तव, आदित्य प्रतापसिंह एवं कार्यक्रम संयोजक अजय चौधरी एवं जयसिंह जैन विशेष रूप से उपस्थित थे ।
राष्ट्र-संत चन्द्रप्रभ महाराज ने कहा कि संत और सिपाही के समागम को देखकर लगता है जैसे शेर और गाय का समागम हुआ है । संत और सिपाही एक-दूसरे के पूरक हैं । संत समाज में संस्कारों का निर्माण करता है और सिपाही समाज को सुरक्षा प्रदान करता है। कभी राम और कृष्ण जैसे लोगों ने भी सिपाही बनकर रावण और कंस जैसे दुष्टों का संहार किया था ठीक वैसे ही हर सिपाही बुराइयों का संहार करे। काम पड़ने पर सिपाही संत जैसा भी बने ताकि जैसे संत को समाज में सम्मान से देखा जाता है वैसे ही सिपाही को भी आम व्यक्ति सम्मान से देख सके। सिपाही की परिषाभा देते हुए संतप्रवर ने कहा कि सिपाही में तीन अक्षर है स प और ह ,स से सेवा करे, प से पूरा परिश्रम करे और ह से हँसमुख बने ।
संतप्रवर ने कहा कि सिपाही शांतिदूत बने, उसका नाम आग लगाने वालों में नहीं बुझाने वालों में आए और जो काम रुमाल से हो जाए उसके लिए रिवाल्वर का उपयोग न करे। देशवासियों को सरकार भले ही अच्छी मिले न मिले ]पर सिपाही अच्छे मिलने चाहिए ताकि देश की अच्छी तरक्की हो सके। भले ही हम सूरज बनकर पूरी दुनिया का अंधेरा मिटा नहीं सकते पर दीपक बनकर आसपास का अंधेरा तो मिटा ही सकते हैं । योग्यताओं का विकास करें-संतप्रवर ने कहा कि किस्मत की बजाय काबिलियत पर भरोसा रखें । किस्मत से कागज हवा में तो उड़ सकता है ]पर आसमान जैसी ऊँचाइयों को छूने के लिए पतंग जैसी काबिलियत चाहिए। भले ही हथौड़े की पहली चोट से पत्थर न टूटे और दसवीं चोट में परिणाम आए ]इसका मतलब यह नहीं कि नौ चोटें निष्फल गई। नौंवी चौटों ने प्रयास किया और दसवीं चोट से परिणाम आया। जैसे भाप बनने के लिए पानी का उबलना और दीवार में कील ठोकने के लिए तकिये की बजाय हथौड़ा जरूरी है ठीक वैसे ही भाग्य को खोलने के लिए पुरुषार्थ जरूरी है। जब लोहे का काम करके कोई टाटा और चमड़े का काम करके कोई बाटा बन सकता है तो हम अपनी जिंदगी में आगे क्यों नहीं बढ़ सकते \
कर्तव्यों के पालन के प्रति सन्नद्ध रहें - संतप्रवर ने कहा कि हर सिपाही कर्तव्य के प्रति पूर्ण सन्नद्ध रहे। अगर सैनिक नैतिक नियमों और नैतिक मूल्यों के प्रति जागरूक हो जाए तो भारतवासी अपने आप ठीक हो जाएँगे ।
दुव्र्यसनों का त्याग करें - संतप्रवर ने कहा कि सिपाही का जीवन आदर्श युक्त होना चाहिए। उसे किसी भी तरह के दुव्र्यसनों का सेवन नहीं करना चाहिए। दुव्र्यसन न करने वाला व्यक्ति ही सिपाही बनने लायक हुआ करता है ।
सोच को ऊपर उठाएँ - संतप्रवर ने कहा कि व्यक्ति ताड़ासन करके या उछलकूद द्वारा साढ़े सात फुट से ज्यादा ऊँचा नहीं उठ सकता, पर अपनी सोच को ऊपर उठा ले तो वह हिमालय से भी ज्यादा ऊँचा उठ सकता है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति वैसा ही बनता है जैसा वह सोचता है। अगर व्यक्ति सोच के प्रति सावधान हो जाए तो वह अपने जीवन को शानदार बना सकता है। हमारा दिमाग और कुछ नहीं, चार बीघा जमीन की तरह है। इसमें हम अच्छे विचारों के बीच बोएंगे तो अच्छी फसले उगकर आएगी, नहीं तो नकारात्मकता के झाड़-झंकार उगने से कोई नहीं रोक पाएगा ।
माँ-बाप को करें प्रणाम - संतप्रवर ने कहा कि सुबह उठते ही माता-पिता को पंचाग प्रणाम करें। ये प्रणाम आपके लिए न केवल रक्षाकवच का काम करेंगे वरना नौ ग्रहों को भी अनुकूल बना देंगे ।
संतप्रवर ने कहा कि सिपाही शांतिदूत बने, उसका नाम आग लगाने वालों में नहीं बुझाने वालों में आए और जो काम रुमाल से हो जाए उसके लिए रिवाल्वर का उपयोग न करे। देशवासियों को सरकार भले ही अच्छी मिले न मिले ]पर सिपाही अच्छे मिलने चाहिए ताकि देश की अच्छी तरक्की हो सके। भले ही हम सूरज बनकर पूरी दुनिया का अंधेरा मिटा नहीं सकते पर दीपक बनकर आसपास का अंधेरा तो मिटा ही सकते हैं । योग्यताओं का विकास करें-संतप्रवर ने कहा कि किस्मत की बजाय काबिलियत पर भरोसा रखें । किस्मत से कागज हवा में तो उड़ सकता है ]पर आसमान जैसी ऊँचाइयों को छूने के लिए पतंग जैसी काबिलियत चाहिए। भले ही हथौड़े की पहली चोट से पत्थर न टूटे और दसवीं चोट में परिणाम आए ]इसका मतलब यह नहीं कि नौ चोटें निष्फल गई। नौंवी चौटों ने प्रयास किया और दसवीं चोट से परिणाम आया। जैसे भाप बनने के लिए पानी का उबलना और दीवार में कील ठोकने के लिए तकिये की बजाय हथौड़ा जरूरी है ठीक वैसे ही भाग्य को खोलने के लिए पुरुषार्थ जरूरी है। जब लोहे का काम करके कोई टाटा और चमड़े का काम करके कोई बाटा बन सकता है तो हम अपनी जिंदगी में आगे क्यों नहीं बढ़ सकते \
कर्तव्यों के पालन के प्रति सन्नद्ध रहें - संतप्रवर ने कहा कि हर सिपाही कर्तव्य के प्रति पूर्ण सन्नद्ध रहे। अगर सैनिक नैतिक नियमों और नैतिक मूल्यों के प्रति जागरूक हो जाए तो भारतवासी अपने आप ठीक हो जाएँगे ।
दुव्र्यसनों का त्याग करें - संतप्रवर ने कहा कि सिपाही का जीवन आदर्श युक्त होना चाहिए। उसे किसी भी तरह के दुव्र्यसनों का सेवन नहीं करना चाहिए। दुव्र्यसन न करने वाला व्यक्ति ही सिपाही बनने लायक हुआ करता है ।
सोच को ऊपर उठाएँ - संतप्रवर ने कहा कि व्यक्ति ताड़ासन करके या उछलकूद द्वारा साढ़े सात फुट से ज्यादा ऊँचा नहीं उठ सकता, पर अपनी सोच को ऊपर उठा ले तो वह हिमालय से भी ज्यादा ऊँचा उठ सकता है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति वैसा ही बनता है जैसा वह सोचता है। अगर व्यक्ति सोच के प्रति सावधान हो जाए तो वह अपने जीवन को शानदार बना सकता है। हमारा दिमाग और कुछ नहीं, चार बीघा जमीन की तरह है। इसमें हम अच्छे विचारों के बीच बोएंगे तो अच्छी फसले उगकर आएगी, नहीं तो नकारात्मकता के झाड़-झंकार उगने से कोई नहीं रोक पाएगा ।
माँ-बाप को करें प्रणाम - संतप्रवर ने कहा कि सुबह उठते ही माता-पिता को पंचाग प्रणाम करें। ये प्रणाम आपके लिए न केवल रक्षाकवच का काम करेंगे वरना नौ ग्रहों को भी अनुकूल बना देंगे ।